~ भ्रष्टाचार ~
कौन मुझे मिटा पाया है ?
में विस्तृत एवं विशाल हूँ !
में ही महाकाल हूँ !
सूरज आया , चाँद गया ,
तारे टिमटिमाकर बुझ गए
क्या वे मुझे मिटा पाए ?
हाँ,
सूरज ने चाँद को खाया,
चाँद ने तारो को मिटाया,
कितने आए, चले गए -
कोशिश में मुझे मिटने की ,
खुद-ब-खुद मिट गए !
में आज भी वैसे ही बरकरार हूँ
कुछ समझे ,
में ही तो भ्रष्टाचार हूँ
मनवीणा के बोल....
कौन मुझे मिटा पाया है ?
में विस्तृत एवं विशाल हूँ !
में ही महाकाल हूँ !
सूरज आया , चाँद गया ,
तारे टिमटिमाकर बुझ गए
क्या वे मुझे मिटा पाए ?
हाँ,
सूरज ने चाँद को खाया,
चाँद ने तारो को मिटाया,
कितने आए, चले गए -
कोशिश में मुझे मिटने की ,
खुद-ब-खुद मिट गए !
में आज भी वैसे ही बरकरार हूँ
कुछ समझे ,
में ही तो भ्रष्टाचार हूँ
मनवीणा के बोल....
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