Tuesday, 15 July 2014

~ भ्रष्टाचार ~

~ भ्रष्टाचार ~

कौन मुझे मिटा पाया है ?
में विस्तृत एवं विशाल हूँ !
में ही महाकाल हूँ !

सूरज आया , चाँद गया ,
तारे टिमटिमाकर बुझ गए
क्या वे मुझे मिटा पाए ?
हाँ,
सूरज ने चाँद को खाया,
चाँद ने तारो को मिटाया,
कितने आए, चले गए -
कोशिश में मुझे मिटने की ,
खुद-ब-खुद मिट गए !
में आज भी वैसे ही बरकरार हूँ

कुछ समझे ,
में ही तो भ्रष्टाचार हूँ

मनवीणा के बोल....

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